News Agency : इन सारे सवालों के जवाब आपको तब पता चलेंगे जब आप एक खेतिहर मज़दूर, मिस्त्री , ईंट भट्ठे पर काम करने वाले मज़दूरों की आंखों में झांककर देखेंगे. उनके हाथों को छूकर देखेंगे.उस ज़मीन पर खड़े होकर देखेंगे जहां वह लकड़ी की चप्पल पहनकर भट्ठी में कोयला झोंकते हैं.ये भारत के उन करोड़ों असंगठित मज़दूरों की कहानी है जो 45 से 50 डिग्री सेल्सियस पर कड़ी धूप में काम करते हैं ताकि अपना और अपने बच्चों का पेट पाल सकें.लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ की हालिया रिपोर्ट कहती है कि साल 2030 तक भारत में ऐसी 3.4 करोड़ नौकरियां ख़त्म हो जाएंगी.भारत में ऐसे लोगों की संख्या करोड़ों में है जो कड़ी धूप में सड़क किनारे पकौड़े बेचने, पंक्चर बनाने और पानी बेचने जैसे काम करते हैं.वहीं, खेतों, बिस्किट बनाने वाली फैक्ट्रियों, धातु गलाने वाली भट्ठियों, दमकल विभाग, खनन, कंस्ट्रक्शन और ईंट भट्ठों पर काम करने वाले करोड़ों मज़दूरों पर इसका ज़्यादा असर पड़ेगा क्योंकि इन जगहों का तापमान पहले से ही अधिक रहता है.कैथरीन सेगेट के नेतृत्व में तैयार की गई इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बढ़ती गर्मी की वजह से दोपहर के घंटों में काम करना मुश्किल हो जाएगा जिससे मज़दूरों के साथ-साथ उन्हें काम देने वालों को भी आर्थिक नुक़सान होगा.बीबीसी ने एक थर्मामीटर की मदद से ये जानने का प्रयास किया है कि असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले करोड़ों मज़दूर कितने तापमान पर काम करते हैं और इसका उनकी सेहत पर क्या असर पड़ता है.भट्ठे पर काम करने वाले मज़दूर राम सूरत बताते हैं, “यहां काम करना कोई आसान बात नहीं है. हमारी मजबूरी है, इसलिए कर रहे हैं. लकड़ी की चप्पल पहनकर काम करते हैं, रबड़ और प्लास्टिक वाली चप्पलें जल जाती हैं.”राम सूरत जिस जगह खड़े होकर काम कर रहे थे, उस ज़मीन का तापमान 110 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा था.इन मज़दूरों के बीच कुछ घंटे बिताने के बाद ही बीबीसी संवाददाता को आंखों में जलन, उल्टी और सिर दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा.ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी जगह पर दिन भर काम करने वालों के शरीर पर इसका क्या असर पड़ता होगा.इसका जवाब राम सूरत देते हैं, “जब यहां काम करना शुरू करते हैं तो पेशाब में जलन होने लगती है. ये काम लगातार चलता रहता है. छह घंटे के काम में एक मिनट का भी आराम नहीं होता है. इससे बचने के लिए पानी पीना बंद कर दो तो पेशाब सफेद होने लगती है.””डॉक्टर को दिखाया है. लेकिन वो कहते हैं कि भट्ठे पर काम करने की वजह से ये सब हो रहा है. काम न करें तो ठीक भी हो जाते हैं. लेकिन काम कहां छोड़ सकते हैं. मजबूरी है.”ये कहते हुए राम सूरत वापस भट्ठी में कोयला डालने लगते हैं ताकि आग जलती रहे.
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